मृत्यु की सिहरन को तभी महसूस किया जा सकता है, जब कोई अपना हमेशा के लिए चला जाए। मृत्यु पूछ कर नहीं आती, पर अपने पीछे बहुत कुछ छोड़ जाती है। जैसे कि एक उजड़ा हुआ परिवार, सूनापन, बेसहारा जीवन साथी। हम में से हर एक ने जीवन में कभी न कभी अपने किसी प्रियजन या परिवार के सदस्य के चले जाने के दुःख को भोगा है; फिर चाहे वो सीख देने वाला हमारा कोई बड़ा हो या कोई व्यापारिक साझेदार। दुःख की इस घड़ी में निश्चित रूप से कोई भी बेचारगी और बेसहारा महसूस करता है।
अपने किसी परिजन/परिचित/मित्र या साझेदार के न रहने की स्थिति इतनी गंभीर और दु:खदायी होती है कि उसके सामने बाकी सब कुछ गौण हो जाता है, और दुनिया रुक-सी जाती है। हमें हर क्षण साथ बिताए पल और उनकी खुशनुमा यादें आ घेरती हैं। जिस पर यह आकस्मिक आ पड़ा अकेलापन बहुत भारी मालूम पड़ता है। इस पर यदि शोक संतप्त परिवार ऐसा है, जहां कमाने वाला मुखिया ही न रहा हो, भावनात्मक झटके के साथ आर्थिक असुरक्षा की भावना ज्यादा मुखर हो हावी हुई जाती है। ऐसे में परिवार के शोकार्त सदस्य, जो पहले से ही सुध-बुध खोये बैठे होते हैं, उनके लिए तार्किक रूप से सोच-समझकर निर्णय ले पाना मुश्किल होता है। ऐसी असमंजस की घड़ी में सही मार्गदर्शन एवं सहायता की जरूरत अहम है।